PARTICLE PHYSICS

PARTICLE PHYSICS
FUNDAMENTAL PARTICLES

सोमवार, 2 नवंबर 2015

भौतिकी(Particle Physics) क्या है?


नई वैज्ञानिक खोजो के समाचार मे प्रोटान, इलेक्ट्रान, न्युट्रान,
न्युट्रीनो तथा क्वार्क का नाम आते रहता है। ये
सभी के परमाण्विक कणो के एक
चिड़ीयाघर के सदस्य है और ये इतने सूक्ष्म है
कि उन्हे सूक्ष्मदर्शी से
देखा जाना भी संभव नही है। हम आम
तौर पर अपने आसपास जो भी कुछ देखते है वे
सभी अणुओ और परमाणुओं से बने है, लेकिन हमे
परमाण्विक मूलभूत कणो के अध्ययन के लिये अणु और परमाणु
के भीतर भी झांकना होता है जिससे हम
ब्रह्माण्ड की प्रकृति को समझ सके । इस विज्ञान
की इस शाखा के अध्ययन को कण
भौतिकी(Particle Physics), मूलभूत कण
भौतिकी( Elementary Particle Physics) या
उच्च ऊर्जा भौतिकी(High Energy Physics
(HEP)) कहा जाता है।
परमाणु की संकल्पना ग्रीक दार्शनिक
डेमोक्रिट्स तथा भारतीय ऋषी कणाद ने
सदियो पहले दी थी,
पिछली सदी(20 वीं) के
प्रारंभ तक इन्हे हर तरह के पदार्थ के निर्माण के लिये
आवश्यक मूलभूत कण माना जाता रहा था। प्रोटान, न्युट्रान और
इलेक्ट्रान के बारे मे हमारा ज्ञान रदरफोर्ड के प्रसिद्ध प्रयोग के
पश्चात ही विकसित हुआ है, जिसमे हम
पाया था कि परमाणु का अधिकतर भाग रिक्त होता है तथा इसके केंद्र
मे प्रोटान और न्युट्रान से बना एक घना केंद्रक होता है और
बाह्य लगभग रिक्त स्थान मे इलेक्ट्रान गतिमान रहते है।
कण भौतिकी विज्ञान को कण त्वरको ( particle
accelerators) के अविष्कार के पश्चात तीव्र
गति प्राप्त हुयी, जो कि प्रोटान या इलेक्ट्रान
को अत्यंत तेज ऊर्जा देकर उन्हे ठोस परमाणु नाभिक से
टकरा सकते है। इन टकरावों के परिणाम वैज्ञानिको के लिये
आश्चर्यजनक थे, जब उन्होने इन टकरावो मे उत्पन्न ढेर सारे
नये कणो को देखा।
1960 के दशक के प्रारंभ तक कण त्वरक कणों को अत्याधिक
ऊर्जा देने मे सक्षम हो गये थे और इन टकरावो मे उन्होने 100
से ज्यादा नये कणो का निरीक्षण किया था। क्या ये
सभी उत्पन्न कण मूलभूत है? वैज्ञानिक एक
लंबी अवधि तक
पिछली सदी के अंत तक संशय मे रहे।
सैद्धांतिक अध्ययन और प्रयोगों कि एक
लंबी श्रॄंखला के पश्चात ज्ञात हुआ कि इन मूलभूत
कणो के दो वर्ग है जिन्हे क्वार्क(quark) और लेप्टान
(lepton) कहा गया। लेप्टान कणो के उदाहरण इलेक्ट्रान
(electron) , न्युट्रीनो(neutrino )) है। इनके
साथ मूलभूत बलों(fundamental forces) का एक समूह है
जो इन कणो से प्रतिक्रिया करता है। ये मूलभूत बल
भी ऊर्जा का संवहन विशेष तरह के
कणो की पारस्परिक अदलाबदली से करते
है जिन्हे गाज बोसान(gauge bosons) कहते है। इसका एक
उदाहरण फोटान है जोकि प्रकाशऊर्जा का पैकेट है और विद्युत-
चुंबकिय बल (electromagnetic force) का संवहन
करता है।
ये मूलभूत कण विभिन्न तरह के संयोजनो(मिश्रणो) से अन्य
कणो जैसे प्रोटान, न्युट्रान तथा कण त्वरक मे देखे गये ढेर सारे
कणो के चिड़ियाघर का निर्माण करते है। यहाँ पर यह
बताना भी आवश्यक है कि कणो के इन समूह मे
प्रति कणो(anti-particles) का भी समावेश है,
जोकि अपने मूल कण के विपरीत होते है। कणो से
पदार्थ(matter) बनता है और प्रतिकणो से प्रतिपदार्थ(anti-
matter) ।
पदार्थ का निर्माण क्वार्क कणो से होता है। क्वार्क के छह
प्रकार है अप(up (u)), डाउन( down (d)), चार्म(charm
(c)), स्ट्रेंज(strange (s)), टाप( top (t)) तथा बाटम
(bottom (b))। इन सभी छह क्वार्को के अपने
अपने प्रतिक्वार्क भी है जिन्हे हम उन्हे निर्देशित
करने वाले अक्षर के उपर आड़ी रेखा से दर्शाते है।
क्वार्क आपसे मे मिलकर भारी कण बनाते है जिन्हे
बार्यान(baryons) कहते है। क्वार्क और प्रतिक्वार्क मिलकर
अस्थायी मेसान(mesons) कण बनाते है। परमाणु
केंद्रक का निर्माण करने वाले प्रोटान और न्युट्रान दोनो कण बार्यान
है, जबकि धनात्मक और ऋणात्मक केआन(Kaon) मेसान के
उदाहरण है।
वर्तमान मे स्टैंडर्ड माडेल एक ऐसा सिद्धांत है जो मूलभूत
कणो और उनके मध्य मे होने वाली विभिन्न
प्रतिक्रियाओं की व्याख्या करता है। कण
भौतिकी इस माडेल की हर संभव उपाय से
जांच करती है और यह जानने का प्रयास
करती है कि कुछ रहस्य या अनजाने तथ्य छूट
ना जाय़ें। इस लेख मे आगे हम स्टैंडर्ड माडेल के
गुणो की चर्चा करेंगे।
हमारा ब्रह्माण्ड कैसा है?
हम संक्षेप मे ब्रह्माण्ड तथा उसके इतिहास को जानने का प्रयास
करतॆ है। यह माना जाता है कि ब्रह्मान्ड का जन्म एक
महाविस्फोट “Big Bang” मे हुआ था, इस विस्फोट मे एक
नन्हे से बिंदु से अत्याधिक ऊर्जा और तापमान उत्पन्न हुआ था।
इस क्षण के पश्चात ब्रह्माण्ड का विस्तार अत्यंत
तीव्र गति से हुआ, इसी दौरान कुछ
ऊर्जा कण और प्रतिकण युग्म के रूप द्रव्यमान मे परिवर्तित
हो गयी । आइंस्टाइन के प्रसिद्ध
समीकरण पर ध्यान दे E= mc । महाविस्फोट के
एक सेकेंड के अत्यंत लघु भाग के पश्चात विकिरण(शुद्ध
ऊर्जा के फोटान) तथा क्वार्क, लेप्टान तथा गाज बोसान का मिश्रण
ही अस्तित्व मे था। अत्याधिक घनत्व वाले इस
कालखंड मे कण और प्रतिकण आपस मे टकराकर ऊर्जा मे
परिवर्तित हो गये लेकिन किसी अज्ञात कारण से
पदार्थ कणो का एक लघु भाग शेष रह गया। इसी शेष
पदार्थ ने वर्तमान के ब्रह्माण्ड को आकार दिया है। इस क्षण के
पश्चात भी ब्रह्माण्ड का तीव्र गति से
विस्तार जारी था, एक सेकंड के सौंवे भाग के पश्चात
ब्रह्माण्ड शीतल हुआ, उसका तापमान 100 अरब
डीग्री था, इस तापमान पर क्वार्क आपस
मे जुड़कर प्रोटान और न्युट्रान बनाने लगे, ये प्रोटान और
न्युट्रान , इलेक्ट्रान, न्युट्रीनो और फोटान के साथ
मिलकर एक प्लाज्मा अवस्था मे थे। इस क्षण के पश्चात क्वार्क
स्वतंत्र अवस्था मे नही पाये जाते। तीन
मिनट पश्चात तापमान कम होकर एक अरब
डीग्री तक हो गया था, इस समय प्रोटान
और न्युट्रान मिलकर हल्के तत्व जैसे ड्युटेरीयम ,
हिलियम, लिथियम के नाभिक का निर्माण करने मे सक्षम थे। इसके
तीन लाख वर्ष पश्चात ब्रह्माण्ड
इतना शीतल हो गया था कि इलेक्ट्रान नाभिक के साथ
झुड़कर हल्के तत्वो के परमाणुओं का निर्माण करने लगे थे। मुक्त
फोटान और न्युट्रीनो तब से लेकर अब तक ब्रह्माण्ड
मे मुक्त विचरण कर रहे है और अब
भी आकाशागंहा, तारो और हमारे अपने परमाणुओं से
टकराते रहते है।
इस तरह से हम देखते हैं कि ब्रह्माण्ड के विकास को समझने
के लिये हमे मूलभूत कणो, क्वार्क, लेप्टान तथा गाज बोसानो के
व्यवहार को समझना होगा। ये सभी मिलकर हमारे
द्वारा जाने गये सभी पदार्थ का निर्माण करते है।
इसके बाहर ब्रह्माण्ड ने दो रहस्यों को अभी तक
हम से छुपाये रखा है, वे है श्याम पदार्थ( Dark Matter)
और श्याम ऊर्जा(Dark Energy!) । हम
जो भी पदार्थ देख पाते(तारे, आकाशागंगा इत्यादि) है
वह आकाशगंगाओं या आकाशघंगा समूहो के निरीक्षित
गुरुत्विय व्यवहार की व्याख्या करने मे समर्थ
नही है। किसी रहस्यपूर्ण श्याम पदार्थ
की उपस्थिति अनिवार्य है। आगे हम दॆखेंगे कि कुछ
नये प्रकार कॆ कण श्याम पदार्थ के व्यवहार
की व्याख्या करने मे कैसे सक्षम हो सकते है। हाल
ही के कूछ निरीक्षणो से पता चला है
कि ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति कम होने
की बजाय तीव्र होते
जा रही है, जोकि किसी रहस्यपूर्ण श्याम
ऊर्जा के फलस्वरूप है। शायद कॊई प्रतिक्रिया(अज्ञात बल)
इसके लिये उत्तरदायी है।
क्वार्क स्वतंत्र अवस्था मे नही पाये जाते
तो उनका अध्ययन कैसे होता है?
वर्तमान मे हम महाविस्फोट के जैसे
ही स्थिति (अत्याधिक तापमान) उत्पन्न करने मे
सक्षम है, जिसमे हम क्वार्क-प्रतिक्वार्क युग्म उत्पन्न
करसकते है। यह प्रक्रिया ऊर्जा को पदार्थ मे परिवर्तित
करती है। संतुलन के लिये इस प्रक्रिया मे क्वार्क
और प्रतिक्वार्क हमेशा युग्म मे बनते है।
यहाँ पर ऊच्च ऊर्जा वाले कण त्वरक चित्र मे आते है। जब
उच्च ऊर्जा वाले कण और प्रतिकण एक दूसरे से आमने सामने
टकराते है, इस लघु बिग बैंग मे शुद्ध ऊर्जा निर्मित
होती है, कण और प्रतिकण एक दूसरे को विनष्ट
करते हुये ऊर्जा रूप मे लुप्त हो जाते है। यह ऊर्जा मूलभूत
कणो के युग्म के रूप मे पुनः प्रकत होने के लिये स्वतंत्र
होती है, जैसे क्वार्क-प्रतिक्वार्क युग्म
या इलॆक्ट्रान-पाजीट्रान युग्म इत्यादि। इस समय
इलॆक्ट्रान और पाजीट्रान को भिन्न कणो के रूप मे
देखा जा सकता है। लेकिन क्वार्क और प्रतिक्वार्क
किसी डोर के दो सीरो की तरह
व्यवहार करते है, आप उसे मध्य से काट सकते है
तो आपको दो सीरो वाली दो भिन्न डोर
मिलेगी, लेकिन आप किसी तरह से
भी एक सीरे वाली दो डोर
प्राप्त नही कर सकते। स्वतंत्र क्वार्क
का निरीक्षण नही किया जा सकता।
जब कणो के इस आमने सामने के टकराव मे क्वार्क-प्रतिक्वार्क
युग्म उत्पन्न होते है, क्वार्क और प्रतिक्वार्क
विपरीत दिशाओं मे उस समय तक गतिमान रहते है जब
तक उनके मध्य की डोर टूट
नही जाती और इस युग्म मे से प्रत्येक
क्वार्क अपने लिये नया साथी खोज लेता है। इस तरह
हमारे निरीक्षण मे मेसान कण
दिखायी देता है जोकि क्वार्क और प्रति क्वार्क से
बना होता है। यदि इस प्रतिक्रिया मे अधिक अतिरिक्त
ऊर्जा बची है तो क्वार्क और प्रतिक्वार्क से बड़े
और भारी कण जैसे प्रोटान, न्युट्रान तथा अन्य
भारी बार्यान कण बन सकते है। इन
सारी प्रक्रिया मे मेसान और बार्यान दोनो वर्गो के
ढेरो प्रकार के कण बनते है जिन्हे हमने लेख के प्रारंभ मे
कणो का चिड़ियाघर कहा था।
हमने यह पाया है कि क्वार्को के अध्ययन के लिये उन्हे
अत्याधिक ऊर्जा वाले टकराव मे निर्मित करना होगा, लेकिन वे हमे
मेसान या बार्यान कणो के रूप मे
ही दिखायी देंगे, स्वतंत्र कण के रूप मे
नहीं। इन क्वार्को के गुणधर्मो को हमे इन मेसान और
बार्यान कणो के क्षय के दौरान होने वाली प्रतिक्रियाओं
के अध्ययन से अप्रत्यक्ष रूप से ही समझाना होगा।
स्टैंडर्ड माडेल(Standard Model)
कण भौतिक वैज्ञानिक अब मानते है कि वे
सभी ज्ञात परमाण्विक कणो के व्यवहार
की व्याख्या एक अकेले सैद्धांतिक फ़्रेमवर्क
स्टैंडर्ड माडेल(Standard Model) से कर सकते है, जिसमे
क्वार्क तथा लेप्टान के साथ उनके मध्य प्रतिक्रिया करने वाले
मजबूत नाभिकिय, कमजोर नाभिकिय तथा विद्युत चुंबकिय
बलों का समावेश है। इस स्टैंडर्ड माडेल मे गुरुत्वाकर्षण बल
(Gravity) का समावेश नही है।
स्टैंडर्ड माडेल कई दशको के अंतराष्ट्रीय
प्रयासो का परिणाम है।, जिसमे प्रयोग, सैद्धांतिक धारणाओं और
चर्चाओं का समावेश है। स्टैंडर्ड माडेल का संक्षेप इस प्रकार
है:
ब्रह्माण्ड मे उपस्थित समस्त पदार्थ क्वार्क तथा लेप्टान से
निर्मित है तथा मूलभूत बलो द्वारा बंधा हुआ है
जोकि अपनी आपसी प्रतिक्रिया गाज बोसान
वर्ग के बलवाहक
कणो की अदलाबदली से व्यक्त करते है।
स्टैंडर्ड माडेल का सभी मूलभूत कणो के गुणधर्मो के
लिये दिशानिर्देशक तत्व सममिति(Symmetry)
की अवधारणा रही है। प्रकृति के
अधिकतर नियम विभिन्न सममितियो द्वारा संचालित होते आये है,
इसलिये माना जाता है कि स्टैंडर्ड माडेल
भी सममिति संचालित होना चाहिये।
क्वार्क
प्रयोगो के दौरान पाया गया था कि बार्यान और मेसान को कुछ विशिष्ट
परिवारो मे वर्गीकृत किया जा सकता था, इससे क्वार्को के
गुणधर्मो मे
सममिति की अवधारणा की आवश्यकता महसूस
हुयी। 1964 मे सैद्धांतिक
भौतिकी वैज्ञानिक गेलमैन तथा ज्विग ने स्वतंत्र रूप से
प्रस्तावित किया कि तीन मूलभूत कणो (तथा उनके
प्रतिकण )को भिन्न तरह से सम्मिलित कर बने कणो से गणितिय
सममिति के नियमों के आधार पर कणो के इस संपूर्ण चिडियाघर
की व्याख्या संभव है। गेलमन ने इन कणो को क्वार्क
नाम दिया और उनके प्रकारो का नामकरण अप, डाउन और स्ट्रेंज
किया। प्रोटान और न्युट्रान के क्वार्को के जैसे घटको के प्रमाण
1960 तथा 1970 के दशक मे मिलने लगे थे। 1974 मे
अप्रत्याशित रूप से SLAC (Stanford Linear
Accelerator Center) मे एक कण J/Psi
की खोज हुयी। इसे यह नाम इसलिये
दिया गया क्योंकि इसकी खोज एक साथ दो वैज्ञानिक
समूहो ने की थी। बाद मे पाया गया कि J/
Psi एक पूर्णत: भिन्न क्वार्क-प्रतिक्वार्क युग्म से निर्मित है
और यह युग्म उस समय तक के स्थापित अवधारणा पर
खरा नही उतरता था। नये चौथे क्वार्क का नाम चार्म
(charm) रखा गया। हम इस लेख मे इन क्वार्कों के विचित्र
नामो पर चर्चा नही करेंगे।
चार क्वार्को का यह समूह छः क्वार्को के समूह मे सैद्धांतिक
वैज्ञानिको काब्बीबो( Cabbibo ),
कोबायाशी ( Kobayashi) तथा मास्कावा( Maskawa )
के सैद्धांतिक पूर्वानुमान के आधार से विस्तारित हो गया। इन
तीन वैज्ञानिको को एकसाथ CKM के नाम से
भी जाना जाता है। अब हमारे पास छह तरह के
क्वार्क, अप , डाउन, स्ट्रेंज, चार्म , टाप तथा बाटम , और छह
प्रतिक्वार्क है। इन क्वार्को को सामान्यत: u, d, s, c, b तथा t
से निर्देशित किया जाता है। ये क्वार्क भिन्न भिन्न संयोजन मे अब
तक निरीक्षित सभी तरह के मेसान
तथा बार्यान को बनाते है। छह क्वार्क
की भविष्यवाणी उस समय
पूरी हो गयी जब 1977 मे एक मेसान
अप्सीलान(Upsilon) को फ़र्मीलैब
(Fermilab) मे खोज निकाला गया, बाद मे पाया गया कि यह बाटम
तथा प्रति-बाटम क्वार्क से बना हुआ है। 1983 मे कार्नेल
( Cornell ) के CLEO प्रयोग मे B मेसान की खोज
हुयी जोकि एक प्रति बाटम क्वार्क तथा एक अप
या डाउन क्वार्क से बना हुआ था। अंत मे 1998 मे
फ़र्मीलैब मे ही सबसे ज्यादा द्रव्यमान
वाले टाप क्वार्क को खोज निकाला गया।
लेप्टान
अब आते है हम लेप्टान पर, 1960 से पहले तीन
लेप्टान अर्थात इलेक्ट्रान, म्युआन(muon) तथा
न्युट्रीनो(neutrino) ही ज्ञात थे। ये
सभी मेसान तथा बार्यान से भिन्न व्यवहार करते है।
सर्वप्रथम उनका द्रव्यमान अत्यंत कम होता है।
किसी इलेक्ट्रान का द्रव्यमान प्रोटान
की तुलना मे 2000 गुणा कम होता है। म्युआन हर
प्रकार से इलेक्ट्रान जैसा है लेकिन द्रव्यमान अधिक है अर्थात
प्रोटान के द्रव्यमान का नौंवा भाग है।
न्युट्रीनो का द्रव्यमान नगण्य होता है और
अभी हाल तक उसे शून्य माना जाता था। लेप्टान शब्द
का अर्थ है कम द्रव्यमान वाले कण। लेप्टान कणो के संबंध मे
दूसरी बात यह है कि इलेक्ट्रान और म्युआन अपने
ऋण विद्युत आवेश से प्रतिक्रिया करते है जबकि न्युट्रिनो का कोई
विद्युत आवेश नही होता है। ये
सभी कण नाभिक मे स्थित कणो(quark) से कमजोर
नाभिकिय बल के द्वारा प्रतिक्रिया करते है। अत्याधिक ऊर्जा वाले
टकरावो मे लेप्टान कण प्रोटान/न्युट्रान के जैसे मेसान तथा बार्यान
का निर्माण नही करते है। 1962 मे अत्याधिक
ऊर्जा वाली न्युट्रीनो की धारा के
प्रथम प्रयोग मे पाया गया कि इलेक्ट्रान का अपना इलेक्ट्रान -
न्युट्रीनो ( electron -neutrino) तथा म्युआन का
अपना म्युआन-न्युट्रीनो( muon-neutrino)
होता है। यह एक ऐसा पहला प्रमाण
था जो बता रहा था कि मूलभूत कणो के परिवार ( families ) या
पीढीयाँ ( generations)
हो सकती है। इस विचार को उस समय और बल
मिला जब 1974 मे J/Psi की खोज के तुरंत पश्चात
एक भारी द्र्व्यमान वाले लेप्टान टाउ(tau)
की खोज हुयी जोकि प्रोटान से
दुगुणा भारी था लेकिन लेप्टान के जैसे व्यवहार
करता था अर्थात नाभिक के कणो से कमजोर नाभिकिय बल के
द्वारा प्रतिक्रिया करता था। यह ऐसा पहला प्रमाण था जिसने
दर्शाया कि लेप्टान के तीन परिवार है,
1. इलेक्ट्रान तथा इलेक्ट्रान-न्युट्रीनो,
2. म्युआन तथा म्युआन-न्युट्रीनो
3. टाउ तथा टाउ-न्युट्रीनो।
द्रव्यमान और ऊर्जा पर एक टिप्पणी :
सभी कणो का द्रव्यमान प्रोटान के द्रव्यमान के
संदर्भ मे दिया जाता है। ऊर्जा और द्रव्यमान के मध्य मे संबंध
E=mc से दिया जाता है, इसलिये प्रोटान का द्रव्यमान
भी ऊर्जा की इकाई मे 938MeV
(Million electron Volts) दिया जाता है। एक प्रोटान के
निर्माण के लिये आवश्यक ऊर्जा लगभग 1GeV है।
क्वार्क और लेप्टान का एक अंतर्भूत कोणिय संवेग(Angular
Momentum) भी है जिसे स्पिन(Spin) कहते है
जोकि 1/2 है,इस आधार पर इन्हे फर्मियान(fermions)
भी कहते है। शून्य या पूर्णांक स्पिन वाले कणो को
बोसान कहा जाता है।
लेकिन एक मूलभूत प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है
कि, क्यो क्वार्क और लेप्टान भिन्न आवेश और भिन्न
प्रतिक्रिया वाला व्यवहार रखते है? इन
कणो की तीन
पीढीयाँ क्यों है और इनके द्रव्यमान इतने
भिन्न भिन्न क्यों है?
बल और प्रतिक्रियायें
अब हम क्वार्कों और लेप्टानों के मध्य मूलभूत बल
या आपसी प्रतिक्रियायों पर चर्चा करेंगे। ये
आपसी प्रतिक्रियायें है, कमजोर नाभिकिय बल, मजबूत
नाभिकियबल, विद्युत चुंबकिय बल तथा गुरुत्वाकर्षण। इनमे से
समस्त विश्व विद्युत चुंबकिय बल तथा गुरुत्वाकर्षण से संचालित
होता है। मजबूत नाभिकिय बल क्वार्कों को बांधकर रखता है
तथा प्रोटान और न्युट्रान को नाभिक मे कसे रखता है। कमजोर
नाभिकियबल अस्थिर नाभिक के क्षय के फलस्वरूप
रेडीयोसक्रियता के लिये उत्तरदायी है
तथा न्युट्रीनो तथा अन्य लेप्टानो के द्वारा पदार्थ के
साथ आपसी प्रतिक्रिया करवाता है।
इन सभी बलों की अन्तर्भूत
शक्ति को मजबूत नाभिकिय बल की तुलना मे
मापा जाता है, उसके बल को 1 इकाई माना जाता है। विद्युत
चुंबकीय बल की अन्तर्भूत शक्ति 1/37
जबकि कमजोर नाभिकिय बल मजबूत नाभिकिय बल से
अरबो गुणा कमजोर है। गुरुत्वाकर्षण सबसे कमजोर बल है। यह
आश्चर्यजनक है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण
इतना शक्तिशाली है कि पृथ्वी और अन्य
ग्रहो को सूर्य की कक्षा मे बांधे रखता है। लेकिन हम
जानते हैं कि दो पिंडो के मध्य गुरुत्वाकर्षण बल जो r
दूरी पर हो वह उनके द्रव्यमान(M तथा m) के
गुणनफल के समानुपात तथा दूरी के वर्ग के विलोमानुपात
मे होता है।
F =GMm/r
अब हम अन्तर्भूत शक्ति का अर्थ जानते है। इसे सार्वत्रिक
बल नियतांक के परिमाण से दर्शाया जाता है जोकि इस उदाहरण मे G
है जोकि द्रव्यमान तथा दूरी पर निर्भर
नहीं है। इसी तरह से दो कणो के मध्य
विद्युत चुंबकीय बल उनके आवेशो(Q,q) के गुणनफल
के समानुपात मे तथा उनके मध्य
की दूरी (r)के वर्ग के विलोमानुपात मे
होता है।
F =αQq/r
इस समीकरण मे सार्वत्रिक स्थिरांक अल्फा(α)
अन्तर्भूत शक्ति दर्शाता है।
हम इकाई आवेश वाले दो प्रोटानो के मध्य विद्युत
चुंबकीय प्रतिकर्षण तथा गुरुत्वाकर्षंण
की सापेक्ष अन्तर्भूत शक्ति की उपर
दिये समीकरणो के प्रयोग से तुलना कर सकते है। इस
तुलना मे दूरी कितनी भी रखें
लेकिन अनुपात हमेशा 10 मिलता है। इस तरह से दो प्रोटान
हमेशा एक दूसरे से दूर जायेंगे, उनपर गुरुत्वाकर्षण बल
का कभी कोई प्रभाव
नही पडेगा क्योंकि दोनो के मध्य विद्युत
चुंबकीय बल गुरुत्वाकर्षण बल पर
भारी पड़ेगा।
हमने पहले ही चर्चा कि है बलों को विशेष तरह के
कणो के आपसी आदानप्रदान से
भी दर्शाया जा सकता है जिन्हे गाज बोसान कहते है
और वे बल क्षेत्र(force Field) के क्वांटा होते है।
क्वांटा अर्थात ऊर्जा के पैकेट! जिस तरह से फोटान वास्तविक होते
है, अर्थात प्रकाश के क्वांटा होते है, इन्हे आवेशित कणो के
त्वरण तथा मंदन से प्राप्त किया जा सकता है, अन्य गाज बोसान
को भी वास्तविक कणो के जैसे निर्मित
तथा निरीक्षित किया जा सकता है।
सभी बोसानो का स्पिन शून्य या पूर्णांक होता है।
मजबूत नाभिकिय बल के वाहक कण को ग्लुआन(gluon)
कहा जाता है क्योंकि यह गोंद के जैसे क्वार्को को प्रोटान और
न्युट्रान मे बांधे रखता है इसके अतिरिक्त यह प्रोटान तथा न्युट्रान
को नाभिक मे बांधे रखता है। कमजोर नाभिकिय बल के वाहक कण
तीन प्रकार के है और इन्हे कमजोर बोसान कहते
है: W तथा Z । गुरुत्विय बल का वाहक कण ग्रेविटान
कहलाता है और यह विशेष रूप से 2 स्पिन का अकेला कण है।
एकीकरण
एक सार्वत्रिक सिद्धांत जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड
की हर प्रक्रिया को समझाया जा सके
की खोज जारी है, जिसके लिये चार बल
बहुत अधिक है। एक ही सार्वत्रिक बल
क्यों नही है? दशको से वैज्ञानिक इन चारो बलों के
एक ऐसे एकीकृत बल स्वरूप की खोज मे
लगे है जोकि कम से कम ब्रह्मांड के जन्म के समय और अगले
कुछ क्षणो मे उपस्थित था। ब्रह्माण्ड
की ऐसी तस्वीर मे वर्तमान
मे निरीक्षित चारो बल उसी वास्तविक
एकमात्र बल के अवतार है। हमे ध्यान रखना चाहिये
कि हमारा आस्तित्व इन चारो बलों के भिन्न होने से
ही संभव है। यदि गुरुत्वाकर्षण इतना कमजोर
नही होता तब
इतनी सारी आकाशगंगाओं,ग्रहों , तारों
की जगह एक महाकाय श्याम विवर (massive
black hole) होता। यदि विद्युत चुंबकीय बल
का मजबूत नाभिकिय बल के साथ एक नाजुक संतुलन
नही होता तो नाभिक बिखर जाता, कोई परमाणु या अणु
बन ही नही पाता, जिससे ना तो रसायन
बनते, ना ही जीवन उत्पन्न होता।
कमजोर नाभिकिय बल के बिना सूर्य के जैसे धीमे जलने
वाले तारों का अस्तित्व नही होता, लोहे से
भारी सभी तत्वों को बनाने
वाला सुपरनोवा विस्फोट के लिये
सही मात्रा न्युट्रीनो द्वारा उत्पन्न
प्रतिक्रिया चाहिये, साथ ही पृथ्वी के गर्भ
मे जारी रेडीयोसक्रिय प्रक्रिया से
पृथ्वी का तापमान इतना उष्ण है कि जीवन
संभव है।
यह संतोषजनक नही है कि चार
बलो की व्याख्या के लिये चार भिन्न सिद्धांत हो।
कणो के मध्य के विद्युत चुंबकीय
प्रक्रिया की व्याख्या क्वांटम इलेक्ट्रोदायनेमिक्स
(QED) अवधारणा से की जा सकती है।
कमजोर नाभिकिय प्रतिक्रिया के लिये एक भिन्न सिध्दांत है लेकिन
अब उसे विद्युत चुंबकीय बल से जोड़ कर एक
नया इलेक्ट्रोवीक सिद्धांत बन चुका है। क्वार्क
तथा ग्लुआन के मध्य की मजबूत नाभिकिय
प्रतिक्रिया के सिद्धांत को क्वांटम क्रोमोडायनेमिक्स
(QCD) कहा जाता है, जिसमे विद्युत आवेश के जैसे एक रंग
(color) आवेश होता है। आइंस्टाइन का साधारण सापेक्षतावाद
का सिद्धांत गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या करता है जिसमे
सारी घटनाये दिक-काल(SpcaeTime) मे
होती है।
जिस तरह से मैक्सवेल(Maxwell) ने दर्शाया था कि विद्युत
और चुंबकत्व दो भिन्न बल ना होकर विद्युत-चुंबकत्व के दो भिन्न
रूप है, उसी तरह से ग्लाशो(Glashow), सलाम
(Salam) तथा वेनबर्ग(Weinberg) की
इलेक्ट्रोवीक अवधारणा(Electroweak Theory)
ने कमजोर नाभिकिय बल और विद्युत चुंबकीय बल
को एक ही बल इलेक्ट्रोवीक
(Electroweak) बल प्रमाणित किया था जिसके लिये उन्के 1979
का नोबेल पुरस्कार मिला था। इसके पहले जब हमने विभिन्न
बलों की अंतर्भूत
शक्ति की चर्चा की थी तब
हमने यह नही बताया था कि यह शक्ति तापमान
या प्रक्रिया के ऊर्जा स्तर पर भी निर्भर करता है।
वर्तमान तापमान (300K या 1/40 eV)पर यह
शक्ति पूरी तरह से भिन्न है लेकिन कमजोर नाभिकिय
बल ऊर्जा स्तर पर पूरी तरह से निर्भर करता है,
तथा 1000GeV पर यह विद्युत चुंबकिय बल के जैसे
शक्तिशाली हो जाता है। स्टैंडर्ड माडेल का इलेक्ट्रोविक
सिद्धांत इसकी सफल व्याख्या करता है। इस तापमान
पर कमजोर नाभिकिय बल और विद्युत चुंबकीय बल
दोनो के मूल समीकरण एक सममिति का पालन करते है
और सभी क्वांटा का द्रव्यमान शून्य होता है। लेकिन
जैसे ही तापमान कम होता है यह
सममिति टूट जाती है तथा क्वांटा टूटकर चार भिन्न
द्रव्यमान वाले गाज बोसान मे परिवर्तित हो जाते है: ये चार बोसान है
W तथा W ( दोनो का द्रव्यमान 80 GeV),Z (द्रव्यमान 91
GeV) तथा फोटान γ (0 द्रव्यमान)। सामान्य कमरे के तापमान पर
भारी W तथा Z बोसान का कोई रोल
नही होता है लेकिन अत्याधिक ऊर्जा स्तर पर जैसे
300 Gev और अधिक पर शून्य द्रव्यमान वाले फोटान
तथा भारी W तथा Z बोसान के मध्य अंतर मिट जाता है
और सभी एक जैसे पूरी शक्ति से
प्रतिक्रिया करते है। CERN प्रयोगशाला जिनेवा मे 1983 मे W
बोसान तथा 1984 मे Z बोसान प्रोटानो के अत्याधिक ऊर्जा पर
टकराव मे खोजा गया था, उनका द्रव्यमान अनुमान के अनुसार था।
स्टैंडर्ड माडेल
की पुष्टि हो रही थी।
इस पहेली का एक
टूकड़ा अभी भी परेशान कर रहा था। हमने
अभी देखा कि इलेट्रोविक सिद्धांत
की सममिति तापमान के कम होने पर टूट
जाती है तथा बलो मे बिखराव प्रारंभ होता है और बोसान
द्रव्यमान प्राप्त करना प्रारंभ करते है। ये द्रव्यमान कहाँ से
आता है, पीटर हिग्स ने बताया कि इसका कारण हिग्स
क्षेत्र है। इस की प्रक्रिया को समझना आसान है।
यहाँ पर हमे यह ध्यान रखना होगा कि द्रव्यमान को हम जड़त्व
का एक रूप या त्वरण के लिये प्रतिरोध मानते है। यदि एक हिग्स
क्षेत्र ब्रह्माण्ड के शीतल होने के साथ सारे
ब्रह्माण्ड मे व्याप्त हो जाता है, तो वह
सभी कणो की गति मे एक प्रतिरोध
उत्पन्न करेगा, इस प्रतिरोध की मात्रा उस कण
द्वारा हिग्स क्षेत्र से प्रतिक्रिया की मात्रा पर निर्भर
करेगी। यह प्रतिरोध ही जड़त्व है जिसे
हम वास्तविकता मे द्रव्यमान हीन कणो के द्रव्यमान
के रूप मे माप सकते है। यदि आप एक खाली कप मे
चम्मच घुमायेंगे तो वह आसानी से
बिना किसी प्रतिरोध के घुमेगी, लेकिन
उसी कप मे पानी डालने के बाद चम्मच
घुमाने पर पानी से प्रतिरोध उत्पन्न होगा और चम्मच
आसानी से नही घुमेगी। कण
भौतिकी मे आप कणो को इस चम्मच के रूप मे ,
तथा पानी को आप हिग्स क्षेत्र के रूप मे मान सकते
है।
इस हिग्स क्षेत्र के बलवाहक बोसान की खोज एक
बड़ी चुनौती थी, इसे खोज
पाना अत्यंत कठीन था लेकिन 2012 मे इसे
भी CERN मे खोज लिया गया और स्टैंडर्ड माडेल
पूर्ण हुआ। इसका द्रव्यमान 125 GeV -127 Gev
पाया गया है।
स्टैंडर्ड माडेल से आगे
इलेक्ट्रोवीक बल तथा मजबूत नाभिकिय बल के
एकीकरण के लिये प्रस्तावित सिद्धांत को
महाएकीकरण सिद्धांत( “Grand Unification
Theories” या GUTs) कहा गया है। लेकिन
अभी तक इस सिद्धांत के लिये कोई प्रमाण
नही मिले है। इसके पश्चात सबसे कठिन है
गुरुत्वाकर्षण बल का अन्य तीन बलों के साथ
एकीकरण। आइंस्टाइन ने इस एकीकरण
के लिये काफी प्रयास किये लेकिन असफल रहे, वे
क्वांटम सिद्धांत मे गुरुत्वाकर्षण के लिये जगह
नही बना पाये।
महासममिति का सिद्धांत कुछ अनसुलझे प्रश्नो का उत्तर देने
का प्रयास करता है, इसके अनुसार हर कण का एक
जोड़ीदार भारी कण है। यदि यह सिद्धांत
सत्य है उस स्थिति मे स्टैंडर्ड माडेल मे ढेर सारे नये कण चाहिये
होंगे, जिसमे हर क्वार्क, लेप्टान तथा गाज बोसान का एक
जोड़ीदार भारी कण चाहिये होगा। ये
सभी कण मिलकर एक महाकाय कणॊ का विशाल कुटुंब
बनायेंगे। इस सिद्धांत के अनुसार मजबूत नाभिकिय बल, विद्युत
चुंबकिय बल तथा कमजोर नाभिकिय बल किसी अत्याधिक
ऊर्जा बिंदु पर समान शक्ति रखेंगे। लेकिन इस सिद्धांत
की पुष्टी और प्रमाणन के लिये ढेर सारे
नये कणो की खोज की आवश्यकता है।
यह भी संभव है कि इनमे से कोई सुपर कण
महाविस्फोट के अवशेष के रूप मे अभी तक शेष
हो और वर्तमान मे श्याम पदार्थ (Dark Matter) का रूप धारण
किये हो और यदि यह सत्य है तो ना केवल स्टैंडर्ड माडेल
पूरा हो जायेगा साथ ही मे श्याम पदार्थ का रहस्य
बोनस मे हल हो जायेगा।
वर्तमान मे सारे सिद्धांतो के एकीकरण करने वाले सर्व
सिद्धांत (Theory Of Everything (TOE))
की खोज जारी है। इन सिद्धांतो मे प्रमुख
है स्ट्रिंग सिद्धांत(String Theory) , जिसके अनुसार कण एक
तंतु के जैसे होते है जो कि 10 आयामो मे तरंगित होते रहते है।
स्ट्रिंगसिद्धांत के एक स्वरूप M सिद्धांत के अनुसार समस्त
ब्रह्माण्ड एक बहु आयामी पर्दों के रूप मे है जिसमे
सभी कण तंतुओं के एक वलय के रूप मे हमारे पर्दे
पर है तथा ग्रेविटान इन सभी पर्दो के मध्य गतिमान
रहता है। इस सिद्धांत के पुर्वानुमानो की प्रायोगिक जांच
शेष है।
कण भौतिकी प्रायोगिक जांच
भौतिकी के इतिहास मे प्रायोगिक खोज और सैद्धांतिक
अवधारणाओं ने एक साथ कदम बढ़ाये है,
कभी कभी एक दूसरे से आगे
पीछे भी होते रहे है, लेकिन दोनो एक
दूसरे के लिये प्रेरणा स्रोत रहे है। रदर्फोर्ड के अल्फा कणो के
स्वर्ण झिल्ली पर टकराने के छोटे से उपकरण अब
कई किलोमिटर व्यास वाले महाकाय कण त्वरक मे बदल चुके है,
जिनमे महंगे तथा विशालकाय उपकरण जमीन के
नीचे दसीयो किलोमीटर
लंबी सुरंगो मे लगे हुये है। इन महाकाय त्वरको मे
प्रोटान, प्रति प्रोटान , इलेक्ट्रान तथा पाजीट्रान जैसे
कणो को प्रकाशगति तुल्य गति प्रदान कर उन्हे एक दूसरे से
आमने सामने(head-on collisions) या किसी स्थिर
लक्ष्य (stationary target)से टकराया जाता है।
वैज्ञानिक अब अपने अनुसंधान के लिये उच्च और उच्चतर
ऊर्जा वाले टकराव का प्रयास कर रहे है। एक नये
भारी कण युग्म के निर्माण और उन्हे भिन्न दिशाओं मे
जाते निरीक्षण करने के लिये, उन दोनो कणो के
द्रव्यमान से कहीं ज्यादा ऊर्जा चाहिये
होती है।
E > 2m c उच्च
ऊर्जा की आवश्यकता छोटे पैमाने के अज्ञात
कणो की और ज्यादा गहराई से अध्ययन करने लिये
भी होती है। यह छोटे क्रिस्टल
की संरचना के अध्ययन के लिये अधिक
ऊर्जा वाली X किरणो के प्रयोग के जैसे है।
दूसरी ओर दुर्लभ घटनाओं के निरीक्षण
के लिये भी कणो की धारा की त
ीव्रता और कणों के टकराने की दर
को बढ़ाना आवश्यक हो जाता है। इसीलिये वर्तमान
कण त्वरको मे दो समांतर पथ मे डीजाइन किये जाते
है, जो उच्चतर ऊर्जा तथा उच्चतर तीव्रता प्रदान
करते है।
कणो के टकराव के निरीक्षण और परिणामो के
विश्लेषण ले लिये कण जांच उपकरण(partilce detectors)
का निर्माण भी आवश्यक होता है जो टकराव के बाद
निर्मित और नैनोसेकंड मे अदृश्य हो जाने वालो कणो को देख सकें।
ये कण जांच उपकरण भिन्न भिन्न तरह के जटिल उपकरणो और
इलेक्ट्रानिक्स से निर्मित होते है, इसके निर्माण के लिये भिन्न
भिन्न क्षेत्रो के
विशेषज्ञो की आवश्यकता होती है।
टकराव वाले प्रयोगो मे टकराव बिंदु को विशालकाय कण जांचक
(particle detectors) उपकरणो से घेर दिया जाता है जहाँ पर
उच्च ऊर्जा वाले कण/प्रतिकण आमने सामने टकराते है।
सामान्यतः अधिकतर टकराव वाले कण त्वरको मे इलेक्ट्रान -
पाजीट्रान , प्रोटान प्रतिप्रोटान का टकराव होता है
तथा टकराव के पास विशालकाय कण जांच उपकरण (particle
detectors) लगे होते है।
अन्य उपकरणो मे स्थिर लक्ष्य के साथ
कणो की एक सघन धारा के टकराव का अध्ययन
किया जाता है। इन प्रयोगो मे ऊच्च ऊर्जा वाले
न्युट्रीनो की सघन धारा(Dense
Stream) तथा विशाल जांच उपकरणो(Detectors) का प्रयोग
होता है जिसमे
न्युट्रीनो की प्रतिक्रिया का अध्ययन
हो सके। अधिकतर प्रयोग एक तरह के न्युट्रीनो
( म्युआन न्युट्रीनो) के दूसरे तरह के
न्युट्रीनो (उदा. टाउ न्युट्रीनो) मे
परिवर्तन का अध्ययन करते है। दशको तक चले इन
सभी प्रयोगो के प्रमाणो से और सटिकतम जांच से अब
यह लगभग तय हो गया है कि न्युट्रीनो का द्रव्यमान
(नगण्य ही सही) होता है। महाविस्फोट
के तुरंत पश्चात बने न्युट्रीनो आज सारे ब्रह्माण्ड मे
छाये हुये है और उनका नगण्य द्रव्यमान भी श्याम
पदार्थ की व्याख्या कर सकता है।
कण त्वरको के निर्माण की कला और विज्ञान
दोनो तकनिक के विकास पर निर्भर है। ठोस
अवस्था वाली इलेक्ट्रानिक्स(Solid State
Electronics), सुपरकंड्क्टींग चुंबक
(Superconducting Magnet), कम्प्युटर और अन्य
दुर्लभ पदार्थो की तकनिक के विकास के साथ प्रायोगिक
कण भौतिकी के लिये आवश्यक उपकरणो के निर्माण
और सफल प्रयोग करने मे विज्ञान ने एक
बड़ी छलांग लगायी है। इन प्रयोगो से
कभी कभी नयी तकनिक
का विकास हुआ है,
कभी कभी नयी तकनिक के
विकास ने प्रयोगो को नयी दिशा दी है।
ये सभी महाकाय और जटिल कण त्वरक और जांच
उपकरणो का संचालन बड़ी संख्या मे भौतिक वैज्ञानिक
करते है, जिनकी संख्या 100 से लेकर 1000 तक
हो सकती है। इन प्रयोगो मे सहयोग
का दायरा अंतराष्ट्रीय, अंतरमहाद्विपिय होता है,
जो विज्ञान के विकास के लिये राष्ट्रीय और राजनितिक
सीमाओं से परे और उपर होता है।
भविष्य की ओर एक नजर
पिछले वर्ष तक शिकागो के समीप
फ़र्मीलैब के कण त्वरक टेवाट्रान ( Tevatron ))
तथा जिनेवा स्विट्जरलैंड स्थित CERN के कण त्वरक LHC
(Large Hadron Collider) का मुख्य लक्ष्य हिग्स बोसान
की खोज था जो स्टैंडर्ड माडेल की एक
टूटी कड़ी था, अब इस कण के खो जाने के
पश्चात, इस के गुणधर्मो के अध्ययन और मान्यताओं
की पुष्टि के लिये प्रयोग चल रहे है।
सभी ज्ञात कणो के सहयोगी
महासममितिक सहयोगीयों(supersymmetric
partners) की खोज
सभी प्रयोगो का एक उद्देश्य रहता है और अगले
कुछ दशको तक रहेगा जिससे स्टैंडर्ड माडेल के पीछे
की वास्तविक कण
भौतिकी की खोज हो सके। इसके अतिरिक्त
ऐसी कोई भी खोज जो गुरुत्वाकर्षण के
साथ स्टैंडर्ड माडेल के महाएकीकरण
की ओर एक कदम हो हमेशा एक मुख्य उद्देश्य
रहेगा।
एक नये भिन्न किस्म के कण त्वरक और टकराव यंत्र के विकास
और निर्माण की योजना चल रही है।
इसमे इलेक्ट्रान और पाजीट्रान को टकराया जायेगा इसे
ILC(International Linear Collider) कहा जायेगा, यह
एक रैखिक कण टकराव यंत्र होगा जिसमे त्वरक
की लंबाई
दसीयों किमी होगी। इसमे कई
तकनिकी चुनौतियाँ है और विश्व
व्यापी सहयोग की आवश्यकता  है
। 

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